खण्डवा/ जय नागड़ा- यदि शाहीनबाग में धरने पर बैठकर रास्ता घेरना आतंकवाद है तो किसी के पैरो के नीचे से जमीन खींच लेना , सदियों से यहाँ रहने वालो से उनकी शिनाख्त पूछना भी आतंकवाद है... इस देश में हिन्दू -मुसलमानो के बीच ऐसा ज़हर फैलाया जा रहा है की इससे असली मुद्द्दे गुम हो जायें। देश में सीएए और एनआरसी के विरोध में हो रहे धरना-प्रदर्शन के दौरान शाहीन बाग़ ,लखनऊ और कोलकाता में जो तीन मौते हुई है उसके लिए जितनी भारतीय जनता पार्टी जिम्मेदार है उतने ही वे मुस्लिम सांसद भी जिन्होंने इस बिल का सदन में विरोध नहीं किया। अब देश में बड़ी क्रान्ति होगी और फिर अम्बेडकर ,गाँधी और नेहरू का सपनो का देश बनेगा। मशहूर शायर मुनव्वर राना की बेटी सुमैया राना सीएए के विरोध को हवा देते हुए यह बात कही।
खंडवा के मुस्लिम बहुल कहारवाड़ी क्षेत्र में सीएए और एनआरसी के विरोध में चल रहे धरना -प्रदर्शन के 32 वे दिन देश के मशहूर शायर मुनव्वर राना की बेटी सुमैया उन्हें सम्बल देने पहुंची। इस मंच से उन्होंने आंदोलनकारियों को न केवल जोश से भर दिया बल्कि यह समझाईश भी दी कि यह लड़ाई महज़ एक कौम के लिए नहीं बल्कि देश को बचाने के लिए है। उन्होंने यह नारे भी लगवाए कि "दादा लड़े थे गोरो से ,हम लड़ेंगे चोरो से... " उन्होंने अपने तीखे तेवर न सिर्फ भाजपा के प्रति दिखाए बल्कि उन मुस्लिम सांसदों पर भी निशाना साधा जिन्होंने इस बिल का पुरजोर विरोध नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि हमने ज़ज़्बात में अक्सर कई गलत फैसले किये है जिसमे सबसे पहला तो देश के बंटवारे का पाकिस्तान बनाने का फैसला था। आज का पढ़ा -लिखा मुस्लिम नौजवान देशभक्त है ,वह पाकिस्तान नहीं जायेगा वह इसी देश में क्रांति लाएगा सबको साथ लेकर।
खण्डवा में पहली बार इस मंच पर मुस्लिम महिलाओं ने भी खुलकर भागीदारी की और मंच से अपनी बात भी कही। शाहीन बाग़ का असर अब छोटे कस्बो पर बह पड़ता दिख रहा है। खास बात यह है कि इस आंदोलन को अब देशभक्ति के नए रंग में डुबोया जा रहा है जिसमे महात्मा गाँधी से लेकर आंबेडकर तक नेहरू से लेकर डॉ कलाम तक की तस्वीरें है ,हाथो में तिरंगा है। इसके साथ ही इस आंदोलन से अब गैर मुस्लिम समाज को भी जोड़ने की बात होने लगी है। कहारवाड़ी जो कि खण्डवा का साम्रदायिक रूप से अतिसंवेदनशील क्षेत्र समझा जाता है वहां इस आंदोलन में जोश तो दिख रहा है लेकिन उग्रता नहीं है। अब इस आंदोलन को मुस्लिम आंदोलन से हटकर देश के लिए आंदोलन में तब्दील करने की कोशिश हो रही है तभी तो यहाँ बिहार के आगामी चुनाव को लेकर भी यही बातें हुई की चुनाव में जाति देखकर नहीं बल्कि व्यक्ति की आपराधिक पृष्ठभूमि देखकर ही वोट दे। उन्हें वोट ने दे जिन्होंने देश के साथ गद्दारी की है चाहे वह मुस्लमान ही क्यों न हो ?
सुमैया राना ने कहा कि दोनों सदनों से जब सीएए का बिल पास हो रहा था तब वे लोग भी थे जो खुद को मुसलमान कहते है। ये लोग वो थे जिन्हे हमने चुनकर बैठाया था और उन्होंने सीएए की मुख़ालफ़त नहीं की। आज उन लोगो को हमें चुन-चुनकर याद करना है की इन्ही लोगो गद्दारी की थी ,उन्होंने अपना फ़र्ज़ निभाया होता तो आज इस तरह सड़को पर बैठने की नौबत नहीं आती। शाहीन बाग में एक बच्ची की मौत नहीं हुई होती ,कलकत्ता में एक और मौत नहीं हुई होती ,लखनऊ में एक बच्ची की मौत नहीं हुई होती , इन मौतों के लिए जितनी भारतीय जनता पार्टी जिम्मेदार है उतने मुस्लिम विद्यायक और सांसद भी जिम्मेदार है। हमने ज़ज़्बात में आकर बहुत से गलत फैसले किये है जिसमे पहला ज़ज़्बाती फैसला तो 1947 में हो गया जब पाकिस्तान बना। मैं उसकी सख्त खिलाफत करती हूँ की इस मुल्क का नक्शा बिगाड़ने की हिम्मत कैसे हुई ? उस उसे ताकत कहाँ से मिली थी ? आज यह सोचना है यह मुल्क हमारा है , यह हिंदुस्तान मुसलमानो का उतना ही है जितना हिन्दुओं, सिख, ईसाई और दलितों का है।
सुमैया राना ने यह भी मंच से कहा कि "मुझे किसी पत्रकार ने पूछा की सुमैया जी आपका नाम एनआरसी में नहीं आया तो आप किस मुल्क में रहना पसंद करेंगी ? बांग्लादेश ,अफगानिस्तान या पाकिस्तान ? मुझे इन बाहरी मुल्को के बजाय मुझे इस मुल्क की जेल ज्यादा प्यारी है। मैं इस मुल्क की जेल में रहकर आखरी साँस लेना पसंद करुँगी लेकिन इस मुल्क से जाना गवारा नहीं। और यह हर मुसलमान ,हिन्दू ,सीखा और दलित का नारा है कि पैदा यही हुए है ,यहीं पर मरेंगे हम ,वो और लोग थे जो कराची चले गए...