माता पिता बच्चों को बचपन में ही दें संस्कार - जया किशोरी जी | पहले ही दिन कथा में उमड़ा विशाल जनसैलाब


खंडवा- बच्चों को बचपन से ही ईश्वर के मार्ग पर डाल दिया जाना चाहिए। बच्चा, कच्चा घड़ा होता है। उसे आकार दिया जा सकता है। यदि आपके पास ज्यादा वक्त नहीं भी है तो स्वयं ईश्वर में आस्था रखें और अपने बच्चों को भी अपने साथ पूजा पाठ में शामिल करें। उसमें संस्कार डालें। उक्त उद्गार कथा वाचक बाल संत जया किशोरीजी ने नानी बाई को मायरो आयोजन के प्रथम दिन मूंदी में कही। जया किशोरी जी ने  कहा कि तेजी से बदलते सामाजिक एवं पारिवारिक ताना-बाना के बीच आज लोग व्याकुल हो रहे हैं। अपनी व्यस्तता के बीच एकल परिवारों में बच्चों में संस्कारों के बीज बोना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। यह सही है कि माता-पिता यह महसूस कर रहे हैं कि उनके पास अपने ब'चों के लिए वक्त नहीं है। एकल परिवारों में ब'चों के सिर पर दादा-दादी या नाना-नानी का भी हाथ नहीं होता। ऐसे में उनका व्याकुल होना स्वाभाविक है। किन्तु यह वस्तुस्थिति नहीं है। यदि हम ठान लें कि हमें प्रतिदिन अपने बच्चों के साथ एक-दो घंटे व्यतीत करने हैं। उनके साथ खुले मन से वार्तालाप करना है तो इसके लिए वक्त निकाला जा सकता है। 



माता-पिता दोनों की जिम्मेदारी बच्चें-
जया किशोरीजी ने कहा कि बच्चों की परवरिश माता और पिता दोनों की संयुक्त जिम्मेदारी है। यदि माता के पास ज्यादा वक्त नहीं है तो पिता को यह जिम्मेदारी निभानी चाहिए। उन्हें किसी भी विषय पर बच्चों से बात करनी चाहिए, राय मशविरा करना चाहिए। जरुरी है कि हफ्ते के सात दिनों में हम उन्हें एक दिन भगवान की भक्ति का भी बताए।  



नानी बाई रो मायरो के प्रथम दिन बालसंत जयकिशोरी जी ने नरसी भगत के जीवन से संबंधित कथा के विभिन्न प्रसंगों को बड़े ही रोचक तरीके से श्रोताओं को सुनाया। पहले ही दिन कथा में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा और लगभग 10 हजार श्रद्धालुओं ने कथा का श्रवण किया। इस संगीतमयी कथा में बालसंत ने नरसी भगत के जीवन वृत्तांत सुनाते हुए कहा कि नरसी मेहता बचपन से ही गुंगा व बहरा था। उनकी दादी नरसी मेहता की इस स्थिति को लेकर बहुत व्याकुल रहती थी। उसकी व्याकुलता को समझते हुए एक दिन भगवान शिव ने साधु का रूपधारण कर गांव के मन्दिर में आकर तपस्या में लीन हो गए। जब नरसी की दादी को पता चला कि गाव में एक महान तपस्वी आया हुआ है तो वह जाकर उस तपस्वी से अपने गूंगे व बहरे पोते को ठीक करने की गुहार लगाई तो तपस्वी बने भगवान शिव ने कहा कि आप का पोता न गूंगा है और न ही बहरा है। इतना कहकर भगवान शिव ने अपनी दैविय शक्ति से नरसी के गूंगे व बहरेपन को दूर कर दिया। तब नरसी भी अन्य लोगों की तरह बोलने व सुनने लगा। बालसंत ने बताया कि भगवान की कृपा से नरसी दिनभर भगवत भजन में लगा रहता मगर इसके बावजूद उस पर अनेक मुसीबतें आई जिसे समय-समय पर परमात्मा ने खुद दूर किया। उन्होंने कहा कि इस भीषण कलियुग में भगवान का नाम ही सर्वोपरी है तथा सर्वसुलभ है जो कि अर्थ, धर्म व मोक्ष को देने वाला है। कथा के माद्दमक प्रसंगों को सुनकर श्रोता भाव विभोर हो उठे।



कथा के पहले दिन सांसद नंदकुमार सिंह चौहान, खंडवा विधायक देवेन्द्र वर्मा, मांधाता विधायक नारायण पटेल, कथा संयोजक संतोष राठौर, भाजपा जिलाध्यक्ष सेवादास पटेल, समाजसेवी सुनील जैन, दीपक सोनी, पंकज मुंदड़ा, गोपाल भगत, राजेश बिड़ला, कैलाश पाराशर ने कथा में उपस्थित होकर जया किशोरी जी का अभिनंदन कर आशीर्वाद लिया और श्रद्धालुओं के बीच बैठकर कथा श्रवण की।