गणेश शंकर विद्यार्थी जन्मदिन विशेष- सांप्रदायिक सद्भाव के सच्चे उपासक थे विद्यार्थी जी 


हायनपोस्ट न्यूज़ डेस्क-सांप्रदायिक दंगे जब होते हैं तो बेकसूर अपनी जान गवा देते हैं मात्र मजहब के नाम पर किसी की जान ले लेना कहां का धर्म है लोग खान पान रहन सहन धर्म उपासना रीति रिवाज के आधार पर एक दूसरे का खून बहाने में संकोच नहीं करते हैं । यह सब अगर कोई गहराई से सोचता था , इन सब समस्याओं के निराकरण के लिए अमल करता था तो वे थे अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी । पूरे देश में अगर कहीं सांप्रदायिक सद्भाव की बात आती है तो विद्यार्थी जी का नाम श्रद्धा से प्रथम पंक्ति में लिया जाता है । उन्होंने देश में सांप्रदायिक सद्भावना बनाए रखने को लेकर अपनी जान तक गंवा दी। अशोकनगर का नाम अगर कहीं लिया जाता है तो इसलिए कि अशोकनगर जिले में मुंगावली में गणेश शंकर विद्यार्थी का बचपन बीता । जिला आज इस अमर शहीद के कारण अपनी पहचान कायम किए हुए हैं। गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म हिंदी पंचांग अनुसार आश्विन मास की शुक्ल चतुर्दशी को संवत 1947 को तथा अंग्रेजी मास अनुसार 26 अक्टूबर 1890 को तीर्थराज प्रयाग में हुआ था। जिसे आप लोग इलाहाबाद के नाम से जानते हैं। गणेश शंकर ने अपनी पहली किलकारी यही कि एक अतरसुइया मोहल्ले में भरी थी। उनके पिता का नाम बाबू जय नारायण लाल था ।वह हथगांव फतेहपुर कानपुर के नजदीक उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे । गणेश शंकर के पिता ग्वालियर की सिंधिया स्टेट के अंतर्गत मुंगावली के स्कूल में सहायक अध्यापक के पद पर पदस्थ थे। आज यह स्कूल मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले में मुंगावली तहसील में स्थित है। ग्वालियर संभाग का एक हिस्सा है । गणेश शंकर विद्यार्थी का बचपन यही बीता । बचपन से ही बड़े कुशाग्र बुद्धि थे ।जब वे 4 वर्ष के थे तब वे 18 सो 94 में अपने पिता के साथ मुंगावली आ गए ।उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता की स्कूल से ही प्रारंभ की। गणेश शंकर विद्यार्थी ने सन 1905  में मुंगावली के एंग्लो वर्नाक्यूलर स्कूल से मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण की थी। मुंगावली के विद्यालय में आज भी वह दाखिला पंजी सहेज कर रखा गया है । जिसमें गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम दर्ज हुआ था । यह दाखिला पणजी 1902 से 1906 तक का है । जिसमें गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम दर्ज होने से स्थानांतरण पत्र 1905 में लेने का वर्णन किया गया है । गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम इस पंजी में 940 में नंबर पर दर्ज है । जिसमें उन्हें इलाहाबाद का निवासी बताते हुए पास पास्ड दी इंग्लिश मीडियम 1905 दर्ज किया गया है। बे  उच्च शिक्षा के लिए कानपुर आ गए लेकिन परिस्थिति वश उन्होंने नौकरी छोड़ दी । और बे पत्रकारिता से जुड़ गए। उन्होंने कालांतर में अपना स्वयं का अखबार प्रताप निकाला और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आग उगलने लगे। वे अपने जीवन काल में 5 बार जेल गए । देश में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने जाने के पक्षधर थे सदा इसी में लगे रहते । उनके बलिदान का वाकया है- कानपुर में सांप्रदायिक दंगे की आग भड़क उठी । विद्यार्थी जी उसे रोकना चाहते थे , विद्यार्थी दंगों को रोकने के लिए कूद  पड़े। बे  मुस्लिम बहुल बस्तियों में फंसी हिंदू को निकालते और हिंदू बहुल्य बस्तियों में मुस्लिम परिवार की रक्षा करते।  उन्हें एक स्थान पर घेर लिया गया । तब विद्यार्थी जी ने कहा कि मुझे घसीट कर ले जाने की आवश्यकता नहीं है मैं भागकर जान बचाने वालों में से नहीं हूं । मरना तो एक दिन सभी को है अगर मेरे मरने से इन लोगों की कलेजे की आग ठंडी होती है तो यहां समर्पण करना  बेहतर है । 25 मार्च 1931 को कानपुर में विद्यार्थी  जी इस दंगे में शहीद हो गए।  आज अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्मदिन है।