बच्चों की सुरक्षा के लिये सख्त कानून बनाया गया हैं ‘‘पाक्सो एक्ट‘‘


खण्डवा- वर्तमान में बच्चों के साथ जिस तरह से बर्बर यौन व्यवहार करने की घटनाएं देखने में आ रही है, वह भारतीय समाज के लिए शर्मनाक है। बच्चों को यौन उत्पीडन से बचाने के लिए वर्ष 2012 में एक कानून बनाया गया था जिसे पॉक्सो कानून यानी की प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 अर्थात लैंगिक उत्पीडन से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम कहा जाता है। इस कानून के बाद भी अपराधों में कमी नहीं आने के कारण कानून को और सख्त बनाते हुए पिछले दिनों संशोधित पाक्सो एक्ट 2019 लागू किया गया है, जिसमें बच्चों के प्रति यौन अपराध करने वाले अपराधियों को दंड दिए जाने के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं।
प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 के तहत अंतरराष्ट्रीय बाल संरक्षण मानकों के अनुरूप प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति यह जानता है कि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है तो उसे इसकी रिपोर्ट नजदीकी थाने में देनी चाहिए, यदि वो ऐसा नहीं करता है तो उसे छह महीने के कारावास और आर्थिक दंड से दंडित किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि 18 साल से कम किसी भी मासूम के साथ अगर दुराचार होता है तो वह पॉक्सो एक्ट के तहत आता है। इस कानून के लगने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त अधिनियम की धारा 11 के साथ यौन शोषण को भी परिभाषित किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई भी व्यक्ति अगर किसी बच्चे को गलत नीयत से छूता है अर्थात बेड टच करता है या फिर उसके साथ गलत हरकतें करने का प्रयास करता है या उसे पोर्नोग्राफी दिखाता है तो यह धारा 11 के तहत दोषी माना जाएगा। इस धारा के लगने पर दोषी को तीन साल तक की सजा हो सकती है।
इस कानून की धारा 4 में वो मामले आते हैं जिसमें बच्चे के साथ कुकर्म या फिर दुष्कर्म किया गया हो। इस अधिनियम में सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक का प्रावधान है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। धारा 6 के अंतर्गत वो मामले आते हैं जिनमें बच्चों के साथ कुकर्म, दुष्कर्म के बाद उनको चोट पहुँचाई गई हो। इस धारा के तहत 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अगर धारा 7 और 8 की बात की जाए तो उसमें ऐसे मामले आते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग में चोट पहुँचाई जाती है। इसमें दोषियों को पाँच से सात साल की सजा के साथ जुर्माना का भी प्रावधान है।
पाक्सो एक्ट के तहत पुलिस को पीडि़त बच्चे की देखभाल और संरक्षण के लिए तत्काल व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी दी गई है। जिसके तहत बच्चे के लिए आपातकालीन चिकित्सा उपचार प्राप्त करना और बच्चे को आश्रय गृह में रखना शामिल है। पुलिस की यह जिम्मेदारी भी बनती है कि मामले को 24 घंटे के अंदर बाल कल्याण समिति की निगरानी में लाए। इस अधिनियम में बच्चे की मेडिकल जाँच बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में करनी चाहिए, जिस पर बच्चे का विश्वास हो और बच्ची की मेडिकल जाँच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए। इस नियम में केस की सुनवाई एक विशेष अदालत द्वारा बंद कमरे में कैमरे के सामने दोस्ताना माहौल में किया जाने का प्रावधान है। इस दौरान बच्चे की पहचान गुप्त रखने की कोशिश की जानी चाहिए। अधिनियम में यह कहा गया है कि बच्चे के यौन शोषण का मामला घटना घटने की तारीख से एक वर्ष के भीतर निपटाया जाना चाहिए।
पॉक्सो अधिनियम में 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को बच्चा परिभाषित किया गया है। यह लैंगिक रूप से निरपेक्ष कानून है। इस कानून के तहत बच्चों का यौन उत्पीडन करने वाले दोषियों को उम्रकैद के साथ मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। कानून में बच्चों का यौन उत्पीडन करने के उद्देश्य से उन्हें दवा या रसायन आदि देकर जल्दी युवा करने को गैर जमानती अपराध बनाया गया है। इस अपराध के लिए पाँच साल तक की कैद का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश देते हुए कहा है कि वह हर जिले में विशेष न्यायालयों की स्थापना करें। कोर्ट ने कहा है कि विशेष अदालतों को 60 दिनों के अंदर-अंदर बच्चों पर यौन उत्पीडन के मामलों की सुनवाई शुरू करने की कोशिश करनी चाहिए।